करवा चौथ भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं के लिए एक विशेष पर्व है, जो अपने पति की लंबी आयु और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए समर्पित होता है। हर साल कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत 2024 में 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा। करवा चौथ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है, जो न केवल स्त्रियों के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए एक खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का प्रमुख उद्देश्य पत्नियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना करना होता है। इसे निष्ठा, प्रेम, और त्याग का प्रतीक माना जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करती हैं और फिर दिन भर बिना जल और अन्न ग्रहण किए उपवास करती हैं। चंद्र दर्शन और पूजा के बाद ही उनका व्रत पूर्ण होता है।
इस व्रत का मुख्य आधार पति-पत्नी के रिश्ते में आपसी प्रेम और विश्वास को मजबूत बनाना है। करवा चौथ पर महिलाएं न केवल अपने पति के लिए, बल्कि परिवार की समृद्धि और सुख-शांति की भी कामना करती हैं। यह त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
करवा चौथ व्रत की कथा
करवा चौथ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन सबसे प्रचलित कथा वीरवती की मानी जाती है।
वीरवती की कथा:
प्राचीन समय में, वीरवती नाम की एक सुंदर राजकुमारी थी, जो सात भाइयों की इकलौती बहन थी। विवाह के बाद, वीरवती ने करवा चौथ का व्रत रखा। दिन भर भूखी-प्यासी वीरवती कमजोर हो गई और चंद्र दर्शन से पहले ही मूर्छित होने लगी। अपनी बहन की यह दशा देखकर उसके भाइयों ने उसे भोजन कराने की योजना बनाई। भाइयों ने एक पेड़ के पीछे से आईने में चाँद जैसी रोशनी दिखाई और वीरवती को विश्वास दिलाया कि चंद्रमा उदय हो गया है। वीरवती ने भोजन कर लिया, लेकिन इसी कारण उसका पति अचानक बीमार पड़ गया और मृत्यु के निकट पहुंच गया।
वीरवती ने अपने पति की मृत्यु देखकर विलाप किया और तपस्या शुरू कर दी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी पार्वती प्रकट हुईं और वीरवती को सच्चे समर्पण और प्रेम के कारण उसके पति को पुनः जीवित कर दिया। तब से ही यह माना जाता है कि जो स्त्री सच्चे हृदय से करवा चौथ का व्रत करती है, उसके पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य की रक्षा होती है।
करवा चौथ पूजा विधि
- सरगी: व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले की जाती है, जिसमें महिलाएं अपने ससुराल वालों द्वारा दी गई सरगी (विशेष खाद्य सामग्री) का सेवन करती हैं। सरगी में मिठाई, फल, और सूखे मेवे होते हैं।
- शृंगार और पूजा की तैयारी: व्रत के दौरान महिलाएं सुंदर परिधान धारण करती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं और संपूर्ण शृंगार करती हैं। इसके बाद वे पूजा की थाली तैयार करती हैं, जिसमें करवा (मिट्टी का घड़ा), धूप, दीप, चावल, मिठाई, और जल होता है।
- करवा माता की पूजा: संध्या समय महिलाएं समूह में या घर पर ही करवा माता और भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। वे व्रत की कथा सुनती हैं और करवा माता से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
- चंद्र दर्शन और अर्घ्य: चंद्रमा के उदय होने पर महिलाएं उसे छलनी से देखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद वे अपने पति का चेहरा देखकर व्रत को पूरा करती हैं।
करवा चौथ का आधुनिक संदर्भ
हालांकि करवा चौथ का त्योहार पारंपरिक रूप से पत्नियों के लिए ही मनाया जाता है, आधुनिक समय में कई पति भी इस व्रत का पालन करते हैं, यह अपने साथी के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक बन चुका है।
करवा चौथ 2024 में यह पर्व न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि आपसी प्रेम और विश्वास का अद्वितीय उत्सव है। यह एक ऐसा त्योहार है जो वैवाहिक जीवन को मजबूती प्रदान करता है और एक-दूसरे के प्रति समर्पण और निष्ठा को दर्शाता है।